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Tuesday, 3 May 2016

HINDI POMES MAITHILI SHARAN GUPT

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।
                मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt)

Saturday, 30 April 2016

UNIQUE STATUS IN HINDI

  • लेकर के मेरा नाम मुझे कोसती तो है …
  • नफरत में ही सही पर मुझे सोचती तो है…
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  • दिल मे छूपा रखी.. है मुहब्बत काले धन की तरह… 
  • खुलासा नही करता हू कि कही हंगामा ना हो जाये.

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  • पहले तो यूं ही गुज़र जाती थीं , मोहोब्बत हुई… 
  • तो रातों का एहसास हुआ..............................।।
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  • कहतें हैं कि मोहबत एक बार होती है.....................
  • पर मैं जब जब उसे देखता हूँ..मुझे हर बार होती है॥
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  • मेरे इस दिल को तुम ही रख लो,बड़ी फ़िक्र रहती है इसे तुम्हारी..!
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  • पगली तू बात करने का मौका तो दे, कसम से कहता हु, 
  • रूला देंगे तुझे तेरे ही सितम गिनाते गिनाते.............!!
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  • वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी …… 
  • फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं लोग …?
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  • सूखे होंटों पे ही होती हैं मीठी बातें प्यास जब बुझ जाये तो लहजे बदल जाते हैं …..!!
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  • अगर परछाईयाँ कद से और बातें औकात से बड़ी होने लगे !
  •  तो समझ लीजिये कि सूरज डूबने ही वाला है..!
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  • कितना कुछ जानता होगा वो शख्स मेरे बारे में 
  • मेरे मुस्कुराने पर भी जिसने पूछ लिया की तुम उदास क्यों हो.
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  • बहुत देर करदी तुमने मेरी धडकनें महसूस करने में..!
  • वो दिल नीलाम हो गया, जिस पर कभी हकुमत तुम्हारी थी..!
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  • बदनाम क्यों करते हो तुम इश्क़ को , ए दुनिया वालो…
  • मेहबूब तुम्हारा बेवफा है ,तो इश्क़ का क्या कसूर..!!
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Monday, 25 April 2016

LOVE SHAYARI IN HINDI

दो आईने को देखकर देखा किया तुझे
तेरी आंखों में डूबकर देखा किया तुझे
सुन ले जरा क्या कह रही तुमसे मेरी निगाह
खामोशियों से बोलकर देखा किया तुझे
लहरें तो आके रूक गईं साहिल को चूमकर
आंसू पलक में रोककर देखा किया तुझे
तेरी उदासियों में तस्वीर है मेरी
ये सोचके बस एकटक देखा किया तुझे
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टूटेंगे नहीं उम्मीद के तारे तब तलक
दुनिया में रहेंगे बेसहारे जब तलक
शाम बेचेहरा अक्स है इंतजारों का
रहेगा आईने-मुद्दत ये जाने कब तलक
तू फसाने को कागज पे लिखती तो है
मेरा किरदार नहीं लिखा तूने अब तलक
मेरी देहरी की सीढ़ी तेरे कदम चूमे
यही ख्वाहिश है जिस्मो-जां से लब तलक
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तेरे सिवा दुनिया में है अपना क्या, कुछ भी नहीं
तेरी यादों के सिवा आशियां में क्या, कुछ भी नहीं
मौत आती तो है मेरे दर पे रोज चुपके-चुपके
मगर मिलता है उसे मुझमें अब क्या, कुछ भी नहीं
मुद्दतों-बरसों जिनके खातिर तिल-तिल के मरा
उसने आखिर मेरे दामन में दिया क्या, कुछ भी नहीं
कहने को तो आज सब कुछ मेरे पास है मगर
जो तू ही नहीं तो इसकी कीमत क्या, कुछ भी नहीं
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मुहब्बत की लाखों दुहाई देने वाले
देखे हैं कई झूठी गवाही देने वाले
मजबूरी थी इसलिए कर सके न वफा
बस और क्या कहेंगे सफाई देने वाले
दर्द बढ़ रहा है तो और बढ़ जाने दे
दूर हट जा ऐ मुझको दवाई देने वाले
जिंदगी का दीया मुफलिसी में बुझा
तब आए मिलने दियासलाई देने वाले
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तन्हा ही रहने की आदत है हमको तो लोगों से मिलके क्या करें
अपनी खबर जब हमको नहीं है तो किसके बारे में क्या कहें
 जब थे चले हम अपने सफर पे कोशिश तो की थी मिलने की सबसे
लेकिन हमें तब तज़रबा हुआ था कि इन बेवफाओं से क्या मिलें
देखा है जबसे नंगी हकीकत कपड़े पहनने कम कर दिए हैं
जरुरत है आखिर में एक कफन की तो जिस्म सजाके क्या करें
फक़ीरों के जैसा ही जीना मुनासिब, दिल की सोहबत में मरना अच्छा
लगता है वाज़िब तन्हा ही जीना तो दुनिया में जाके क्या
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हुस्न क्या चीज है, उन आंखों में डूबकर जाना
इश्क क्या होता है, अश्कों को बहाकर जाना
वो मुसलसल रहती है मेरे जिस्मो-जां में
अपने खयालों की किताबों को पढ़कर जाना
लुत्फ मिलता है गमे फिराक के मंजर में भी
हिज्र में चांद-सितारों के संग जागकर जाना
बुझ गया था वो चिराग मेरे जीवन का
मैंने शहनाई की आवाज को सुनकर जाना

                                                         Source:https://jazbat.com 
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Thursday, 21 April 2016

RAHAT INDORI SHAYARI

लोग हर मोड़ पर रुक – रुक के संभलते क्यों है
लोग हर मोड़ पर रुक – रुक के संभलते क्यों है
इतना डरते है तो फिर घर से निकलते क्यों है
मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ ना  कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं
नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ – आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं
मोड़ तो होता हैं जवानी का संभलने के लिये
और सब लोग यही आकर फिसलते क्यों हैं
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आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं 
मंजिलें रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
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सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें
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हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
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जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
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इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
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काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं
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जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब


जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं

चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
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इन्तेज़ामात  नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ
                                                
                                            राहत इन्दौरी