menus

Sunday, 22 May 2016

DIN KUCH AISE GUJARTA HAI KOI

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
                                - गुलजार

No comments:

Post a Comment