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Thursday 30 June 2016

SAD SHAYARI IN HINDI FONTS

दुख के श्मशान में एक कब्र है जीवन का 
जिसे भी देखिए वो लाश सा नजर आए
दिल में हंसते हुए आए थे वो मैयत पे
चेहरे से जो गम में डूबे से नजर आए
जिन मजारों पे कोई फूल न दिखता हो
वो किसी आशिक के घर सा नजर आए
जो कफन को देखते हैं तेरे आंचल में
उसकी आंखों में तुमसे इश्क सा नजर आए
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तू मेरे इश्क का बुरा अंजाम न कर
दिल रो दे मेरा ऐसा कोई काम न कर
बल खाने दे अपनी जुल्फों को हवाओं में
जूड़े बांधकर तू मौसम को परेशां न कर
मुझपे कयामत ढाती है तेरी गजल सी सूरत
मेरे दिल की मैयत का इंतजाम न कर
ख्वाब ये टूट न जाए इस जनम में मेरा
इस बस्ती में मेरा इश्क सरेआम न कर
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सीने में दफन है वो गुजरा जमाना
खामोशी बन गयी जीने का बहाना
दर्द के बदन पे तबस्सुम की पैरहन
निगाहों की उदासी कहती है फसाना
अपने हैं मेरे दूर, मैं खुद से बहुत दूर
तन्हाई ने मुझे बना दिया है दीवाना
उस हुस्न को देखा हमें इश्क हो गया
बरसों तलक मिला रोने का बहाना
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मुझे दिल से जो भुला दिया, तो तूने क्या बुरा किया
कांटे का दामन छोड़ कर, जो भी किया अच्छा किया
आवारगी की राह पे चलके मुझे मंजिल मिली
जिसने मुझे बेघर किया उसने भी कुछ भला किया
जिनके घरों में आंसू थे वहीं पे मुझे पानी मिला
इस शहर में मेरी प्यास ने कुछ ऐसा तज़रबा किया
ऐ दिल बता तुझे क्या मिला मेरे दाग से खेलकर
तूने दर्द से सौदा किया, अपनी गजल बेचा किया

Saturday 25 June 2016

BEST SHAYARI IN HINDI FONT ON LIFE

लिख रहा हूँ अंजाम जिसका कल आगाज़ आएगा;
मेरे लहू का हर एक क़तरा इंक़लाब लाएगा;
मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि;
मेरे बाद वतन पे मरने वालों का सैलाब आएगा।
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दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं;
जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैं।
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अजीब रंग का मौसम चला है कुछ दिन से;
नज़र पे बोझ है और दिल खफा है कुछ दिन से;
वो और थे जिसे तू जानता था बरसों से;
मैं और हूँ जिसे तू मिल रहा है कुछ दिन से।
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बहुत ख़ास थे कभी नज़रों में किसी के हम भी;
मगर नज़रों के तकाज़े बदलने में देर कहाँ लगती है।
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अपनी ज़िन्दगी में मुझ को करीब समझना;
कोई ग़म आये तो उस ग़म में भी शरीक समझना;
दे देंगे मुस्कुराहट आँसुओं के बदले;
मगर हज़ारों में मुझे थोड़ा अज़ीज़ समझना।
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कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम;
उस निगाह--आशना को क्या समझ बैठे थे हम;

रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये;
वाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम;

होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल--दिल को हो सकी;
इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम;

बेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़--दर्द;
तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम;

भूल बैठी वो निगाह--नाज़ अहद--दोस्ती;
उस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हम;

हुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और 'फ़िराक़';
मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम।
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वो कभी मिल जाएं तो क्या कीजिये;
रात दिन सूरत को देखा कीजिये;
चाँदनी रातों में एक एक फूल को;
बेखुदी कहती है सज़दा कीजिये।
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कुछ मतलब के लिए ढूँढते हैं मुझको;
बिन मतलब जो आए तो क्या बात है;
कत्ल कर के तो सब ले जाएँगे दिल मेरा;
कोई बातों से ले जाए तो क्या बात है।
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तेरी यादें भी मेरे बचपन के खिलौने जैसी हैं;
तन्हा होता हूँ तो इन्हें लेकर बैठ जाता हूँ।

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अपनी ज़िन्दगी का अलग उसूल है;
प्यार की खातिर तो काँटे भी कबूल हैं;
हँस के चल दूँ काँच के टुकड़ों पर;
अगर तू कह दे ये मेरे बिछाये हुए फूल हैं।
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तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती;
ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती;

जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर;
फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती;

हब्स का शहर है और उस में किसी भी सूरत;
साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती;

रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है;
शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती;

इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रक्खा है;
इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती।
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किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ।
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उनसे मिलने की जो सोचें अब वो ज़माना नहीं;
घर भी उनके कैसे जायें अब तो कोई बहाना नहीं;
मुझे याद रखना तुम कहीं भुला ना देना;
माना कि बरसों से तेरी गली में आना-जाना नहीं।
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क्या गज़ब है उसकी ख़ामोशी;
मुझ से बातें हज़ार करती है।
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एक मुद्दत से मेरे हाल से बेगाना है;
जाने ज़ालिम ने किस बात का बुरा माना है;
मैं जो ज़िद्दी हूँ तो वो भी कुछ कम नहीं;
मेरे कहने पर कहाँ उसने चले आना है।
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जब रूख़--हुस्न से नक़ाब उठा;
बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा;

डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती;
दिल में तूफ़ान--इजि़्तराब उठा;

मरने वाले फ़ना भी पर्दा है;
उठ सके गर तो ये हिजाब उठा;

शाहिद--मय की ख़ल्वतों में पहुँच;
पर्दा--नश्शा--शराब उठा;

हम तो आँखों का नूर खो बैठे;
उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा;

होश नक़्स--ख़ुदी है 'एहसान';
ला उठा शीशा--शराब उठा।
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यह हम ही जानते हैं जुदाई के मोड़ पर;
इस दिल का जो भी हाल तुझे देख कर हुआ।
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हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया;
औरों को तो क्या हमको भी तबाह किया;
पेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफाई को;
औरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह - वाह किया।
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ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती;
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता;
वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी;
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता।

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यादों को भुलाने में कुछ देर तो लगती है;
आँखों को सुलाने में कुछ देर तो लगती है;
किसी शख्स को भुला देना इतना आसान नहीं होता;
दिल को समझाने में कुछ देर तो लगती है।
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गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे;
गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे;

मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स;
उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे;

मैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशी;
मेरे रक़ीब की मुझे बददुआ लगे;

वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों;
जो मुस्कुरा के बात करे आश्ना लगे;

तर्क--वफ़ा के बाद ये उस की अदा 'क़तील';
मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे।
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माँगने से मिल सकती नहीं हमें एक भी ख़ुशी;
पाये हैं लाख रंज तमन्ना किये बगैर।
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जब कोई ख्याल दिल से टकराता है;
दिल ना चाह कर भी खामोश रह जाता है;
कोई सब कुछ कह कर प्यार जताता है;
तो कोई कुछ ना कह कर प्यार निभाता है।
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अभी मशरूफ हूँ काफी कभी फुर्सत में सोचूंगा;
कि तुझको याद रखने में मैं क्या - क्या भूल जाता हूँ।
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तुम्हें भूले पर तेरी यादों को ना भुला पाये;
सारा संसार जीत लिया बस एक तुम से ना हम जीत पाये;
तेरी यादों में ऐसे खो गए हम कि किसी को याद ना कर पाये;
तुमने मुझे किया तनहा इस कदर कि अब तक किसी और के ना हम हो पाये।
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किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ;
सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ

वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था;
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ;

दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे;
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ;

ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी;
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ।
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वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है;
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है;
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से;
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है।
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क्या कहें कुछ भी कहा नहीं जाता;
दर्द मिलता है पर सहा नहीं जाता;
हो गयी है मोहब्बत आपसे इस कदर;
कि अब तो बिन देखे आप को जिया नहीं जाता।
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तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ;
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ;
मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी;
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।

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पढ़ने वालों की कमी हो गयी है आज इस ज़माने में;
नहीं तो गिरता हुआ एक-एक आँसू पूरी किताब है।
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देख दिल को मेरे काफ़िर--बे-पीर तोड़;
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर तोड़;

ग़ुल सदा वादी--वहशत में रखूँगा बरपा;
जुनूँ देख मेरे पाँव की ज़ंजीर तोड़;

देख टुक ग़ौर से आईना--दिल को मेरे;
इस में आता है नज़र आलम--तस्वीर तोड़;

ताज--ज़र के लिए क्यूँ शमा का सर काटे है;
रिश्ता--उल्फ़त--परवाना को गुल-गीर तोड़;

अपने बिस्मिल से ये कहता था दम--नज़ा वो शोख़;
था जो कुछ अहद सो आशिक़--दिल-गीर तोड़;

सहम कर 'ज़फ़र' उस शोख़ कमाँ-दार से कह;
खींच कर देख मेरे सीने से तू तीर तोड़।
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हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं;
जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है;
मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन--जाँ बनता जाता हूँ;
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है।
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आँखों से आँखें मिलाकर तो देखो;
हमारे दिल से दिल मिलाकर तो देखो;
सारे जहान की खुशियाँ तेरे दामन में रख देंगे;
हमारे प्यार पर ज़रा ऐतबार करके तो देखो।
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रोज साहिल से समंदर का नज़ारा करो;
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा करो;
आओ देखो मेरी नज़रों में उतर कर ख़ुद को;
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा करो।
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ना जाने कब वो हसीन रात होगी;
जब उनकी निगाहें हमारी निगाहों के साथ होंगी;
बैठे हैं हम उस रात के इंतज़ार में;
जब उनके होंठों की सुर्खियां हमारे होंठों के साथ होंगी।
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कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं;
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं;

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ;
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं;

आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात;
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं;

जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा;
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं।
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मोहब्बत एक दम दुख का मुदावा कर नहीं देती;
ये तितली बैठती है ज़ख़्म पर आहिस्ता आहिस्ता।
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मेरी चाहत को अपनी मोहब्बत बना के देख;
मेरी हँसी को अपने होंठो पे सज़ा के देख;
ये मोहब्बत तो हसीन तोहफा है एक;
कभी मोहब्बत को मोहब्बत की तरह निभा कर तो देख।
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ना हम रहे दिल लगाने के काबिल;
ना दिल रहा ग़म उठाने के काबिल;
लगे उसकी यादों के जो ज़ख़्म दिल पर;
ना छोड़ा उसने फिर मुस्कुराने के काबिल।
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दो मशहूर शायरों के अपने-अपने अंदाज
पहले मिर्ज़ा गालिब...............
उड़ने दे इन परिंदों को आज़ाद फिजां मेंगालिब
जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे…..................