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Monday 20 June 2016

DHRAM VEER BHARTI GUNAAH KA GEET

अगर मैंने किसी के होठ के पाटल कभी चूमे

अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे

महज इससे किसी का प्यार मुझको पाप कैसे हो?

महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

तुम्हारा मन अगर सींचूँ

गुलाबी तन अगर सीचूँ तरल मलयज झकोरों से!

तुम्हारा चित्र खींचूँ प्यास के रंगीन डोरों से

कली-सा तन, किरन-सा मन, शिथिल सतरंगिया आँचल

उसी में खिल पड़ें यदि भूल से कुछ होठ के पाटल

किसी के होठ पर झुक जायँ कच्चे नैन के बादल

महज इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?

महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

किसी की गोद में सिर धर

घटा घनघोर बिखराकर, अगर विश्वास हो जाए

धड़कते वक्ष पर मेरा अगर अस्तित्व खो जाए?

हो यह वासना तो ज़िन्दगी की माप कैसे हो?

किसी के रूप का सम्मान मुझ पर पाप कैसे हो?

नसों का रेशमी तूफान मुझ पर शाप कैसे हो?

किसी की साँस मैं चुन दूँ

किसी के होठ पर बुन दूँ अगर अंगूर की पर्तें

प्रणय में निभ नहीं पातीं कभी इस तौर की शर्तें

यहाँ तो हर कदम पर स्वर्ग की पगडण्डियाँ घूमीं

अगर मैंने किसी की मदभरी अँगड़ाइयाँ चूमीं

अगर मैंने किसी की साँस की पुरवाइयाँ चूमीं

महज इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?

महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

                                     - धर्मवीर भारती

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