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Friday 3 June 2016

AANKHON ME JAL RAHA HAI KYUN BY GULZAR

आँखों में जल रहा है क्यूँ, बुझता नहीं धुँआ
उठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुँआ,
चूल्हे नहीं जलाए या बस्ती ही जल गयी
कुछ रोज़ हो गए हैं अब, उठता नहीं धुँआ,
आँखों के पोंछने से लगा आंच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुँआ,
आँखों से आंसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमां ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुँआ.

                                                   Gulzar

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